छोटा हरिरस
छन्द मोतीदाम
हरिगुण गाय महागुण थाय,प्रीति करी गंग तणु जळ पाय।
हरि समर्ये जन वैंकुठ जाय,ध्रुव अविच्छीन हुवा हरि धाय।
प्रभु समर्यां थकी पांडव पांच,तर्या भवसिंधु न आविय आंच।
तर्या प्रहलाद कोटि पंच काज, तर्या हरिचंद्र कोटि सत काज।
हरि अविनाश कियो अमरीख,रहयो रूखमांगद जे अंतरीख।
भीष्म न कीध प्रतिज्ञाय भंग,अहल्याय नाथ दियो फिर अंग।
सदा प्रभु राख विभीषण संग,शरीर कुबजाय कीध सचंग।
रखे हरिजनक त्यो अतिरीख,सबरीय पाय दरसण शीख।
गणे गण पातक जावे भंज,गणि गण उर अजसाय गंज।
वसे जन साधक वैंकुठ वास,ग्रहे पद सांई टळे गर्भ वास।
हरि गुरू संत करो सतसंग,रूदे धरी आप विशेष उमंग।
धरो नहीं कोई रूदे कदी द्वेष,करो नहीं मानव देह कलेश।
अलख धणी सब पूरण आस,बारट एक कियो विश्वास।
विसारत नाम जशे विसरेय,त्रिभुवन नाम अनंत तरेय।
मुरार मुकुंद के माधव मुख,सदा जप जाप वधारण सुख।
विसंभर नाथ कियेह वनाण,कटे जम जाळ करेह कल्याण।
जपो हरि नामरो कायम जाप,प्रले हरि आप करावण पाप।
तवे हरि नाम टले संताप,ईमी धन ईशर रा प्रभु आप।