हरसिद्धी स्तुति


आगे सायर उझळे, नीर अथाहा निल्ल।

थट डूंगरड़े किय थड़ो, हर सिद्धी हासिल्ल।।

छंद आराज

तूं देवी तनुं तेज सु त्रंबा। आद अनाद निश्चल अंबा।।

जग माझल दरसि जगदंबा। प्रगटी रूप अनंत प्रलंबा।।1

दंड प्रचंड दईत दिखावण। घुर घुमंडिय नीर घुमावण।।

बिहळा व्रळ की रूप बाला। महेंकी ज्यूं अगर की माला।।

गीत

श्रृंग उबेरण सा भज जोर, मेघा बळहळ कंठ किलोर।

ग्रेह  तजी गढ रेहां गयणी, कोलाहल चडी मेरू कयणी।

अनंत रीते मां तूं अवतरी, जोर पखे नही बुद्धि अमरी।

या देवी तव रूप अनूप, राजे तोरा रूप विरूप।

सायर वेल उछाली समणां, दीध विसामो भंजी दमणां।

नाद भयंकर गजवे निठे, विलस हुलस तूं बिठे बिठे।

अहट पवन री फूंक उछाले, प्रलय सरूपां नीर पछाले।

वहेतां जाज घमंती वमळे, थारा नमणा होय थळे।

नेह नमीणा थारा नरखी, हल्ले समदां जाज हरख्खी।

वंदे पाव तिहारा वंदण, चाडे दुरसां तोहे चंदण।

धूप नैवेद्य चाड धजायुं, अखे गुणस हरी अरदायुं।

कीरत थारी ईशर कहवे, रिणायरी जो राजी रहेवे।

कुंडळियो

सिद्धिदात्री हरसिद्धी, तूं सिद्ध करन संकल्प।

उर अपेक्षा इक ईव, आप दया चहुं अल्प।।

आप दया चहुं अल्प,कल्प कल्प कल्यानी।

सर्वभूते वासषु, दया निकेत वरदानी।।

ज्ञानी ध्यानी गुनखानी, तु सकल तीर्थ सर्वेश्वरी।

आज नमे कवि ईशरो, मंगल कर माहेश्वरी।।